पंथ-मुक्त आध्यात्मिक समाज संरचना तथा समाज सेवा के लक्ष्य से आचार्यश्री ने मानव मंदिर मिशन की स्थापना की। साधना के साथ सेवा तथा सेवा के साथ साधनापरक प्रवृत्तियों पर मिशन ने अपने को केन्द्रित किया है।

सन् उन्नीस सौ अस्सी में पंजाब का नगर सुनाम आचार्यश्री के ऐतिहासिक अभियानों से आन्दोलित था। उन्होंने तीन अभियान शुरू किए- पहला दहेज-विरोधी, दूसरा मिलावट विरोधी और तीसरा शराब विरोधी अभियान। आचार्यश्री को लगता था कि संत बाने में तपस्या करते हुए स्व कल्याण और आध्यात्मिक ऊँचाइयों में साथ-साथ संतों को सामाजिक परिवर्तनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए। समाज संतों पर गहरी आस्था रखता है। इस आस्था और रचनात्मक सोच से समाज की मलिनता धोई जा सकती है। संत कबीर ने अपनी वाणी के माध्यम से ऐसा कुछ किया था। आचार्यश्री भी समाज में रचनात्मक परिवर्तन चाहते थे। प्रत्येक अभियान के दौरान उन्होंने श्रृंखलाबद्ध प्रवचन किए। पद यात्राए कीं। रैलियां निकालीं और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ अलख जगाया। इनमें सभी वर्गों के लोगों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। दूसरी ओर, शहर में जोर-शोर से चर्चा थी कि दहेज के कारण एक परिवार में बहू को जला दिया गया। उन्हीं दिनों आचार्यश्री की अगुवाई में दहेज विरोधी अभियान चल रहा था। पन्द्रह दिन के इस अभियान का दसवां दिन था। दिन के दस ग्यारह बजे आचार्यश्री को सूचना मिली कि अमुक परिवार में दहेज के कारण बहू को जला दिया गया है। उन्होंने अपने ढंग से इस घटना के खिलाफ समाज का आक्रोश व्यक्त करने और जन-जागरण का फैसला लिया। अगले दिन शाम घिरने के साथ ही सुनाम की सड़कों पर मशालें जल उठीं। उनकी अगुवाई में मशाल जुलूस ने सबका ध्यान आकर्षित किया। सुनाम के इतिहास में आज तक ऐसा कभी नहीं हुआ था। सैकड़ों मशालों की रोशनी लोगों को दहेज न लेने का सन्देश दे रही थीं। श्वेत वस्त्रधारी एक जैन मुनि के पीछे सैकड़ों लोग मशाल लिए चल रहे थे। अद्भुत दृश्य था। सुनामवासियों ने जुलूस जरूर देखे थे लेकिन सड़क पर अँधेरे को चीरती सैकड़ों मशालों की जगमग पहली बार देखी थी और मशालों की पीली रोशनी में श्वेत वस्त्रचारी मुँह पर पट्टी बाँधे ओजस्वी मुनि स्वयं एक प्रकाश-पुंज प्रतीत हो रहे थे। दहेज विरोधी अभियान का प्रभाव सुनाम वासियों पर खूब हुआ। अनेक युवकों और उनके परिवार के लोगों ने दहेज न लेने का संकल्प किया।

आचार्यश्री के भीतर बरसों से बहुत कुछ कसक रहा था। वह लीक से अलग हटकर कुछ नया करना चाहते थे। लेकिन पंथ की चारदीवारियां बार-बार उनकी सोच को बाँध रही थीं। गहन मंथन और सोच-विचार करने के बाद दिसम्बर उन्नीस सौ इक्यासी में पंथ-मुक्त आध्यात्मिक समाज संरचना तथा समाज सेवा के लक्ष्य से उन्होंने मानव मंदिर मिशन की स्थापना की। साधना के साथ सेवा तथा सेवा के साथ साधनापरक प्रवृत्तियों पर मिशन ने अपने को केन्द्रित किया। सन् उन्नीस सौ छियासी में मुनि जी का चातुर्मास हिसार में था। मानव मंदिर मिशन के कार्य रूप को धीरे-धीरे शक्ल मिलने लगी थी। प्रचार-प्रसार की सकारात्मक और उत्साहजनक प्रतिक्रिया मिलने लगी। मानव मंदिर मिशन को एक स्थायी केन्द्र के रूप में स्थापित करने के लिए स्थान भी मिल गया। दिन में व्यवस्था और कल्पना सम्बन्धी व्यस्तताएँ और शाम को प्रवचनों का सिलसिला। अपने मिशन के प्रचार-प्रसार के लिए मुनि जी ने राजस्थान के चुरू और जयपुर संभाग में खूब पदयात्राएं की। फिर हरियाणा के हिसार आदि से होते हुए पंजाब के पटियाला, संगरूर, सुनाम, नामा, अहमदगढ़, लुधियाना, मालेरकोटला में पदयात्राओं व व्यक्तिगत संपर्क द्वारा मिशन को आगे बढ़ाया। साध्वी मंजुलाश्री के साध्यी संघ के साथ मिलकर उन्होंने मानव मन्दिर मिशन को रूपाकार करना शुरू कर दिया था। कई वर्षों में पदयात्राओं के दौरान उन्होंने अनेक धर्म-स्थानक मंदिरों में दर्शन किए और दुनिया के कई रंग देखे। बार-बार महसूस किया कि मंदिर निर्माण सदैव पुण्य कार्य माना जाता है। मूर्तियों की पूजा की जाती है, किन्तु जीते-जागते इंसान को ठोकर मारी जाती है। हर जगह एक-सा आलम। इस डगर और उस डगर में बहुत फर्क नहीं मिला। इस नगर और उस नगर में बहुत फर्क नहीं मिला। परिचय में बड़ी हमदर्दी, हमदर्दी में परायापन। इस नज़र और उस नजर में बहुत फर्क नहीं मिला।

आचार्यश्री गहराई से महसूस कर रहे थे कि गली-मोहल्लों-नगरों में एक से बढ़कर एक विशाल मंदिरों का निर्माण तो हो रहा है। किन्तु सच्चरित्र व्यक्ति का निर्माण नहीं हो रहा। पूजा स्थल तो खूब बन रहे हैं, उनके नाम पर दंगे-फसाद भी खूब हो रहे हैं। लेकिन ठुकराया जा रहा है जीता जागता इंसान। जहाँ मानव के द्वारा मानवता को पूजा जाय, वही सच्चा मंदिर है। मानव का निर्माण ही तो मानवता की पूजा है। अगर खरा मानव नहीं तो खरा समाज कैसे बनेगा? राष्ट्र कैसे बनेगा? अगर इंसान में से इंसान ही प्रकट नहीं हुआ तो देवता और भगवान कैसे प्रकट होंगे। इसलिए इंसान का इंसान चनना सबसे पहले जरूरी है और मानव मंदिर मिशन के रूप में ऐसी ही प्रयोगशाला की आधारभूमि शुरू हो गयी जहाँ व्यक्ति का निर्माण हो। इस कल्पना के मूल में उद्देश्य था धर्म की व्यापक रूप में प्रतिष्ठा। साधना के साथ समाज-सेवा। मानव मंदिर मिशन के माध्यम से यह कार्य शुरू हो गया। 

आपने पूर्व केंद्रीय मंत्री पवन बंसल जी व सरदार लखविंदर सिंह जी के सहयोग से सराय काले खां के पास मानव मंदिर मिशन का दिल्ली केंद्र स्थापित किया। यह केंद्र ही एक तरह से आपके मिशन का मुख्यालय बना और आगे चलकर अनेक सेवा प्रकल्पों का समन्वय इसी केंद्र से स्थापित हुआ।

मानव मंदिर मिशन, दिल्ली के समन्वयन में कई प्रकल्पों का संचालन होता है।